गाँव :- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं - neteduprabhatpati

गांव
गांव किसे कहते हैं - अर्थ, परिभाषा, विशेषता

गाँव का अर्थ

(Gaon ka arth)

गांव या ग्राम का अर्थ छोटी-छोटी मानव बस्तियां होती हैं, जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से पांच हजार के बीच होती है तथा जहां की बड़ी आबादी खेती और अन्य परंपरागत पेशे से जुड़ी होती है| यहां रहने वाले सदस्य आपसी आत्मनिर्भरता से सामाजिक संबंधों का विकास करते हैं। गांव की ऐतिहासिक रूपरेखा गांव की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों में आम सहमति का अभाव है। कुछ विचारकों का मत है कि गाँव की उत्पत्ति का मुख्य आधार सभ्यता का विकास है। सभ्यता के विकास ने मनुष्य के ज्ञान को विकसित किया, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य ने विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रयास शुरू किए और विभिन्न अनुभवों और प्रयासों के बाद उसे संतुष्टि प्राप्त हुई। यह प्रक्रिया समय के साथ निरंतर चलती रही है और वर्तमान समय में नगरों, और कस्बों की संरचना गाँव की संरचना से ही विकसित हुई है।


गाँव की परिभाषा

(Gaon ki paribhasha)

बरट्रांड ने ‘ग्रामीणता’ के निर्धारण में दो आधारों  को प्रमुख माना है- 
(1) कृषि द्वारा आय अथवा जीवन-यापन, 
(2) कम घनत्व वाला जनसंख्या क्षेत्र, 


मैरिल और एलरिज के अनुसार- ‘‘ग्रामीण समुदाय के अन्तर्गत संस्थाओं और ऐसे व्यक्तियों का संकलन होता है जो छोटे से केन्द्र के चारों ओर संगठित होते हैं तथा सामान्य प्राकृतिक हितों में भाग लेते हैं।’’

सेंडरसन के अनुसार - ‘‘एक ग्रामीण समुदाय में स्थानीय क्षेत्र के लोगों की सामाजिक अन्त:क्रिया और उनकी संस्थाएँ सम्मिलित थीं, जिसमें वह खेतो के चारों ओर बिखरी झोपड़ियो तथा पुरवा या ग्रामों में रहती है और जो उनकी सामान्य क्रियाओं का केन्द्र है।’’

पीके के अनुसार- ‘‘ग्रामीण समुदाय परस्पर सम्बन्धित तथा असम्बन्धित उन व्यक्तियों का समूह है जो अकेले परिवार से अधिक विस्तृत एक बहुत बड़े घर या परस्पर निकट स्थित घरों में कभी अनियमित रूप में तथा कभी एक गली में रहता है तथा मूलत: अनके कृषि योग्य खेतों में सामान्य रूप से कृषि करता है, मैदानी भूमि को आपस में बाँट लेता है और आसपास की बेकार भूमि में पशु चराता है जिस पर निकटवर्ती समुदायों की सीमाओ तक वह समुदाय अपने अधिकार का दावा करता है।’’

फेयरचाइल्ड के अनुसार - ‘‘ग्रामीण समुदाय पड़ोस की अपेक्षा विस्तृत क्षेत्र है, जिसमें आमने-सामने के सम्बन्ध पाये जाते हैं, जिसमें सामूहिक जीवन के लिए अधिकांशत: सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक एवं अन्य सेवाओं की आवश्यकता होती है और जिसमें मूल अभिवृत्तियों (Attitudes) एवं व्यवहारों के प्रति सामान्य सहमति होती है।’’


सिम्स के अनुसार- ‘‘समाजशास्त्रियों में ‘ग्रामीण समुदाय’ को ऐसे बड़े क्षेत्रों में रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसमें समस्त अथवा अधिकतर प्रमुख मानवीय हितों की पूर्ति होती है।


आर० के० पाटिल के अनुसार – “ग्रामीण क्षेत्र में सामान्य ग्राम स्थान पर समीपस्थ गृहों में निवास करने वाले परिवारों के समूह को सामान्यतः ग्राम की अभिव्यक्ति के रूप में समझा जा सकता है |"

ए० आर० देसाई के अनुसार – “गाँव ग्राम्य समाज की इकाई है। यह रंगशाला के समान है, जहाँ ग्राम जीवन को प्रकट करता है और कार्य करता है।”

गाँव के प्रकार

(Gaon ke prakar)

डॉ सीएस दुबे ने गाँवों के वर्गीकरण के छ: आधार प्रस्तुत किये हैं-  
1. आकार, जनसंख्या और भू-क्षेत्र के आधार पर। 
2. प्रजातीय तत्व और जातियों के आधार पर। 
3. भूमि के स्वामित्व के आधार पर। 
4. अधिकार और सत्ता के आधार पर। 
5. दूसरे समुदाय से दूरी के आधार पर। 
6. स्थानीय परम्परा के आधार पर।


H.J. Peack ने गाँवों का वर्गीकरण मानव के भ्रमणशील जीवन से कृषि अवस्था वाले जीवन तक के उद्विकास के आधार पर किया है। इस दौरान मानव के अनेक स्थायी और अस्थायी प्रकार के गाँव बसाये। 

इसी आधार पर पीक ने गाँवों को तीन भागों में विभक्त किया है:-

(i) पवासी कृषि ग्राम - इस प्रकार के गाँव अस्थायी प्रकार के होते हैं। ऐसे गाँवों के निवासी किसी स्थान पर थोड़े समय तक रहते हैं और फिर उस स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर कृषि करने चले जाते हैं। वे लोग कितने समय तक एक स्थान पर निवास करेगे, यह भूमि की उर्वरा शक्ति, मौसम की अनुकूलता और जीवनयापन के साधनो की उपलब्धता आदि कारकों पर निर्भर करता है। 

(ii) अर्द्ध.स्थायी कृषि ग्राम - ऐसे गॉवों में लोग कई वर्षों तक निवास करते हैं और जब भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है तो वे गाँव छोड़कर दूसरे उपजाऊ स्थान पर जा बसते हैं। ऐसे गाँव पहले प्रकार के गॉवों की तुलना में स्थायी होते हैं। 

(iii) स्थायी कृषि वाले ग्राम - इस प्रकार के गाँवों में लोग पीढ़ियो से नहीं शताब्दियों से रहते आये हैं। वही कृषि करते हैं, इनकी प्रकृति स्थायी एवं रूढ़िवादी होती है। प्राकृतिक विपदाओं और आर्थिक संकटों को झेलकर भी लोग इन गाँवों में रहते हैं। भारत में अधिकांशत: इसी प्रकार के गाँव देखने को मिलते हैं। 

सोरोकिन ने गाँवों के वर्गीकरण के दो आधार बताये हैं-
1. घरों के संगठन के आधार पर। 
2. भू-स्वामित्व एवं सामाजिक स्तरण के आधार पर। 

घरों के संगठन के आधार पर गाँवों को दो भागों में बॉटा जा सकता है-

 (1) केन्द्रित ग्राम- ऐसे गाँवों में किसान घरों का एक झुण्ड बना कर रहते हैं। उनकी कृषि योग्य भूमि गाँव के बाहर होती है। एक ही निवास स्थान पर साथ-साथ रहने से उनमें दृढ़ और सुसम्बद्ध जीवन का विकास होता है। 

 (2) विकेन्द्रित ग्राम- ऐसे ग्रामों में किसान अपने-अपने खेतों के किनारे छोटे-छोटे समूह बनाकर घरों में निवास करते हैं। उनके निवास स्थान बिखरे हुए होते हैं, अत: उनके सामाजिक जीवन में विभेदीकरण उत्पन्न हो जाता है।

गाँव की विशेषताएँ

(Gaon ki visheshta)

 गाँव की विशेषताएं इस प्रकार है- 

1. ग्राम अथवा गाँव एक निश्चित स्थान पर बसे होते है। इसका क्षेत्र निश्चित व सीमित होता है। 

 2. गांव का प्रकृति के साथ निकट व घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। कुछ गाँव, जो नगर, कस्बे या बाजार के समीप होते है, के अलावा शेष अधिकांश गाँव या तो प्रकृति की गोद मे बसे होते है या प्रकृति से उनका नजदीकी रिश्ता होता है। 

 3. गाँव का आकार सीमित होता है। गांव की आबादी आमतौर पर पाँच हजार से कम होती है। वैसे कतिपय देशो मे दस दस हजार तक की आबादी की बसाहट को भी गाँव माना जाता है। आबादी के साथ गाँव की जनसंख्या का घनत्व भी कम होता है। 

 4. गाँव के लोगो मे व्यावसायिक भिन्नता कम होती है। गांव के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि है। आमतौर पर लोग कृषि कार्य करते है। यदि कुछ लोग कोई अन्य धन्धा भी करते है तो यह भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से संबंधित होता है। 

 5. ग्राम या गाँव की एक मुख्य विशेषता यह है की गाँव मे विभिन्न समूह एक दूसरे के कार्यो पर निर्भर करते है। कार्य के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच सहयोगपूर्ण संबंध होता है। गाँवो के समूहो के बीच श्रम का विभाजन और सहयोग जजमानी व्यवस्था के माध्यम से संचालित होता है। 

 6. भारतीय गाँवों मे श्रम विभाजन का स्वरूप सामान्यतया परंपरात्मक होता है। इसमे विशेषीकरण का अभाव पाया जाता है। गाँवो मे भूमि अधिकांशतः ऊँची जातियों और कहीं-कहीं उच्च मध्यम जातियों के पास होती है। तलाब एवं कुएँ भी अधिकतर उन्ही के पास होते है। हालांकि वर्तमान मे सरकारी नल और टीबेल की व्यवस्था होने से कुएं और तलाब का अब बहुत की ही कम उपयोग होता है।

 7. ग्रामीण समाज मे विवाह तुलनात्मक रूप से कम आयु मे होता है और परिवार का आकार तुलनात्मक रूप से बड़ा होता है। ग्राम समाज मे संयुक्त परिवार का चलन अधिक देखने को मिलता है।

 8. ग्रामीण समाज मे लोगो के बीच प्राथमिक संबंध पाया जाता है। लोगो मे आमने-सामने का प्रत्यक्ष संबंध होता है और वे एक दूसरे को भली भांति जानते है।

 9. ग्रामीण समाज मे आर्थिक, राजनैतिक और किचिंत शैक्षिक आधार पर वर्गभेद कम होता है। यद्यपि संस्कारजनित जातीय आधार पर भेद प्रखर होता है।

 10. ग्रामीण समाज मे महिलाओं की स्थिति तुलनात्मक रूप से पुरूषों से निम्न होती है।

11. ग्रामीण समाज मे तुलनात्मक रूप से स्थायित्व पाया जाता है। परिवर्तन होता है किन्तु उसका दायरा सीमित और गति धीमी होती है। 
 12. ग्रामीण समाज मे व्यावसायिक व सामाजिक गतिशीलता कम होती है। 
 13. ग्रामीण समाज मे अशिक्षा तुलनात्मक रूप से नगरो से अधिक होती है। अशिक्षा के कारण गाँवो मे अंधविश्वास अधिक पाया जाता है। ग्रामीण कमोवेश भाग्यवादी होते है। 
 14. ग्रामीण जीवन मे धर्म, संस्कृति व परम्पराओं का प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक देखने को मिलता है।

15. ग्रामीण क्षेत्रों मे जाति व्यवस्था का अत्यधिक प्रभाव पाया जाता है। व्यावसायिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों मे जातीय नियमो का कठोरता से पालन किया जाता है।


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