इस लेख में मै आपको बताने वाला हूं कि नगरीय समुदाय क्या है,नगरीय समुदाय का अर्थ क्या होता है,नगरीय समुदाय की परिभाषा (विभिन्न विद्वानों के अनुसार),नगरीय समुदाय की विशेषताएं
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| नगरीय समुदाय- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं |
नगरीय समुदाय का अर्थ
नगरीय शब्द नगर से बना है जिसका अर्थ नगरों से सम्बन्धित है। जैसे शहरी समुदाय को एक सूत्र में बांधना अत्यन्त कठिन है। यधपि हम नगरीय समुदाय को देखते हैं, वहां के विचारों से पूर्ण अवगत हैं लकिन उसे परिभाशित करना आसान नहीं है।
नगरीय समुदाय की परिभाषा
नगरीय समुदाय को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –
मैकाइवर के अनुसार
“ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय के मध्य कोई ऐसी सुस्पष्ट विभाजन रेखा नहीं हैं, जो यह निश्चित कर सके कि नगर का अमुक बिन्दु पर अन्त होता है तथा देहात का अमुक बिन्दु पर प्रारम्भ होता है।”सोमवार्ट के अनुसार
“नगर वह स्थान है जो इतना बड़ा है कि उसके निवासी परस्पर एक दूसरे को नहीं पहचानते हैं।”
विलकावस के अनुसार
“नगरों के अन्तर्गत उन समस्त क्षेत्रों को लिया जा सकता है जिनमें जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्ग मील एक हजार से अधिक हो और जहां वास्तव में कोई कृषि नहीं होती हो।”
ई.ई. बगल के अनुसार
“इस प्रकार हम उस बस्ती को एक नगर कहेंगे जहां के अधिकांश निवासी कृषि कार्यों के अतिरिक्त उद्योगों में व्यस्त हों।’
नगरीय समुदाय की विशेषताएं
विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त परिभाषाओं के अतिरिक्त नगरीय समुदाय को स्पष्ट करने के लिये आवश्यक है कि इसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं की चर्चा की जाये जिससे सम्बन्धित प्रत्येक पक्ष सामने आकर नगरीय समुदाय को चित्रित कर सके। इसकी कुछ प्रमुख विशेषतायें हैं।जनसंख्या का अधिक घनत्व
रोजगार की तलाश में गाँव से शिक्षित एंव अशिक्षित बेरोजगार व्यक्ति शहर में आते हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण आज सीमित जमीन में लोंगो को जीवन निवार्ह करना कठिन पड़ रहा है।
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धार्मिक लगाव की कमी
शहरी जीवन में व्याप्त शिक्षा एवं भौतिकवाद उन्हें धार्मिक पूजा-पाठ एवं अन्य सम्बन्धित कर्म काण्डों से दूर कर देते हैं इसलिये यहाँ धर्म को कम महत्व दिया जाता है।
औपचारिक सम्बन्ध
नगरीय समुदाय में औपचारिक सम्बन्ध का बाहुल्य होता है। देखा जाता है कि सदस्यों का व्यस्त जीवन आपसी सम्बन्ध औपचारिक होता है।
अनामकता
नगरीय समुदाय की विशालता एवं उसके व्यस्त जीवन के कारण लोगों को पता ही नहीं होता कि पड़ोस में कौन रहता है और क्या करता है। बहुधा देखा गया कि लोग एक-दूसरे के विशय में जानने तथा उनसे ताल-मेल रखने में कम रुचि रखते हैं। जब तब की उनका कोई विशेष लाभ नहीं या उनका पारिवारिक सम्बन्ध न हो।
आवास की समस्या
आप विभिन्न कार्यकारी योजनाओं के बावजूद भी बड़े-बड़े नगरों मे आवास की समस्या अति गम्भीर होती जा रही हैं। अनेक गरीब एवं कमजोर लोग अपनी रातें सड़क की पटिटयों, बस अड्डे और रेलवे स्टेशनों पर व्यतीत करते हैं। अधिकाधिक मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के पास औसतन केवल एक या दो कमरे के मकान होते हैं। कारखाने वाले नगरों में नौकरी की तलाश में श्रमिकों की संख्या बढ़ जाती है। जिसके कारण उनके रहने के लिये उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाता है और झुग्गी झोपडी जैसी बस्तियां बढ़ने लगती हैं।
अन्ध विश्वासों में कमी
नगरीय समुदाय में विकास के साधन एवं सुविधाओं की उपल्ब्धता के साथ-साथ यहां शिक्षा और सामाजिक बोध ग्रामीण समुदाय से अधिक पाया जाता है। अतएव स्पष्ट है कि यहां के लोगो का पुराने अन्धविश्वासों एंव रुढ़ियों में कम विश्वास होगा।
वर्ग अतिवाद
नगरीय समुदय में धनियों के धनी और गरीबों में गरीब वर्ग के लोग पाये जाते हैं अर्थात यहाँ भव्य कोठियों के रहने वाले, ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले तथा दूसरे तरफ मकानों के आभाव में गरीब एवं कमजोर सड़क की पटरियों पर सोने वाले, भरपेट भोजन न नसीब होने वाले लोग भी निवास करते हैं।
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श्रम विभाजन
नगरीय समुदाय में अनेक व्यवसाय वाले लोग होते हैं। जहाँ ग्रामीण समुदाय में अधिकाधिक लोगों का जीवन कृशि एव उससे सम्बन्धित कार्यो पर निर्भर होता है वहीं दूसरी तरफ नगरीय समुदाय में व्यापार-व्यवसाय, नौकरी, अध्ययन् आदि पर लोगो का जीवन निर्भर करता है।
एकाकी परिवार की महत्ता
नगरीय समुदाय में उच्च जीवन स्तर की आकांक्षा के फलस्वरूप संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियाँ वहन करना कठिनतम साबित होता है। अतएव शहरी समुदाय में एकाकी परिवार का बाहुल्य होता है। इन परिवार में लगभग स्त्री एवं पुरूशों की स्थिति में समानता पायी जाती है।
सामाजिक गतिशीलता
शहरी जीवन में अत्यधिक गतिशीलता पायी जाती है। जहाँ गाँव का जीवन एक शांत समुद्र की तरह होता है। वहीं शहर का जीवन उबाल खाते पानी की तरह होता है।
राजनैतिक लगाव
नगरीय जीवन की बढ़ती शिक्षा, गतिशीलता एवं परिवर्तित सभ्यता राजनैतिक क्षेत्र में लेागों की रूचि बढ़ा देती है। इनको अपने अधिकारों कर्तव्यों एवं राजनैतिक गतिविधि का ज्ञान होने लगता है और इससे राजनैतिक क्षेत्र में झुकाव बढ़ जाता है।
विभिन्न संस्कृतियों का केन्द्र
कोई नगर किसी एक विशेष संस्कृति के जन समुदाय के लिये अशिक्षित नहीं होता। इसलिये देश के विभिन्न गाँवो से लोग नगर में आते हैं और वहीं बस जाते है। ये लोग विभिन्न रीति रिवाजों में विश्वास करते हैं तथा उन्हें मानते हैं।
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